
बेंगलुरु में बाइक टैक्सी चालकों ने कर्नाटक सरकार से आग्रह किया है कि वह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) द्वारा जारी एग्रीगेटर गाइडलाइंस 2025 को जल्द से जल्द अपनाए, ताकि बाइक टैक्सी सेवाओं को पुनः शुरू किया जा सके। इस मांग को एक खुले पत्र के माध्यम से राज्य के प्रमुख मंत्रियों तक पहुंचाया गया है, जिसमें हजारों चालकों की आजीविका पर मंडरा रहे संकट को रेखांकित किया गया है।
बाइक टैक्सी एसोसिएशन (BTA) का कहना है कि केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों को अपनाने से न केवल चालकों की आमदनी और स्थिरता सुनिश्चित होगी, बल्कि बेंगलुरु जैसे भीड़भाड़ वाले शहरों में सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल लास्ट-माइल कनेक्टिविटी को भी बढ़ावा मिलेगा।
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नियमन की कमी बनी संकट की वजह
फिलहाल बाइक टैक्सी सेवाओं को लेकर राज्य में स्पष्ट नियमों का अभाव है, जिससे ये सेवाएं कानूनी रूप से अधर में लटकी हुई हैं। BTA का मानना है कि यह केवल कानूनी चूक नहीं बल्कि एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक संकट है। उनका कहना है कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत पहले से मौजूद प्रावधानों का उपयोग करते हुए राज्य सरकार बिना किसी विधायी संशोधन के इस सेवा को नियमित कर सकती है।
तीन प्रमुख मांगें
BTA की ओर से रखी गई मांगें तीन मूल स्तंभों पर आधारित हैं:
- कानूनी स्पष्टता: चालकों और एग्रीगेटर्स को बिना डर के काम करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश आवश्यक हैं। MoRTH के दिशानिर्देश इसके लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करते हैं।
- रोज़गार का संकट: बाइक टैक्सी कई परिवारों के लिए आय का मुख्य स्रोत है। नियमन में देरी से हजारों चालकों की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है, और कई लोग डिलीवरी सेवाओं की ओर मजबूरन रुख कर रहे हैं।
- यात्रियों को सुविधा: बाइक टैक्सी विशेष रूप से भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में तेज़, किफायती और सुविधाजनक परिवहन विकल्प प्रदान करती हैं। महिला यात्रियों के लिए ये अक्सर अधिक सुरक्षित विकल्प मानी जाती हैं।
राज्य सरकार पर उठे सवाल
BTA के एक प्रतिनिधि ने कहा,
“हम कोई विशेष सुविधा नहीं मांग रहे हैं, बस एक निष्पक्ष व्यवस्था चाहते हैं जिससे हम कानूनी रूप से काम कर सकें और अपने परिवारों का भरण-पोषण कर सकें। हर दिन की देरी से हमारी आमदनी खतरे में पड़ रही है।”
पर्यावरणीय लाभ भी हैं ज़रूरी
यदि इलेक्ट्रिक बाइक टैक्सियों को बढ़ावा दिया जाए, तो यह न केवल ट्रैफिक और प्रदूषण को कम कर सकता है, बल्कि शून्य-उत्सर्जन वाले शहरों की दिशा में भी अहम कदम होगा। दोपहिया वाहनों का कारों की तुलना में कार्बन फुटप्रिंट कम होता है, और इलेक्ट्रिक संस्करण इस लाभ को और भी बढ़ा सकते हैं।
नीति निर्धारण का सही समय
कर्नाटक सरकार और हाईकोर्ट में चल रहे कानूनी संघर्ष इस मुद्दे की जटिलता को दर्शाते हैं। केंद्र सरकार ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि राज्य, गैर-परिवहन दोपहिया वाहनों को साझा परिवहन के लिए अनुमति दे सकते हैं, जबकि राज्य सरकार अब भी पुराने नियमों पर अड़ी हुई है।
यह मुद्दा न केवल कर्नाटक के लिए, बल्कि उन सभी राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी बन चुका है जो नई परिवहन प्रणालियों को लेकर जूझ रहे हैं। यह समय है कि राज्य सरकारें नवाचार, रोज़गार सुरक्षा, यात्रियों की सुविधा और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाकर प्रगतिशील नीति निर्माण की ओर बढ़ें।
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