भारत, अमेरिका और नयी ऊँचाई: NISAR मिशन में भारतीय तकनीक का कमाल

NISAR

भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं ने एक बार फिर दुनिया को चौंका दिया है। ISRO और NASA के संयुक्त मिशन NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) में भारत ने ना सिर्फ भागीदारी की, बल्कि इस मिशन को सफल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस सफलता में सबसे बड़ी भूमिका निभाई भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) ने, जिसने स्पेस-ग्रेड सोलर पैनल और आधुनिक लिथियम-आयन बैटरियां प्रदान कर अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का नया मानक गढ़ा।

क्या है NISAR मिशन?

NISAR दुनिया का पहला ड्यूल-फ्रीक्वेंसी साऱ (SAR) सैटेलाइट है, जो पृथ्वी के सतह के बदलते स्वरूपों, पारिस्थितिकी तंत्र, ग्लेशियर, समुद्री तट, जल स्तर और भू-प्राकृतिक आपदाओं का उच्च-रिजॉल्यूशन मैप हर 12 दिन में बना पाएगा। करीब 1.5 बिलियन डॉलर की लागत से बने इस मिशन का उद्देश्य पृथ्वी के पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की सटीक निगरानी एवं अध्ययन है।

  • यह मिशन प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन, कृषि, जल संसाधन और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में अत्यंत सहायक होगा।

  • वैज्ञानिक तथा नीति-निर्माता इसके डेटा का उपयोग भूकंप, बाढ़, सुनामी, हिमस्खलन तथा वनस्पति बदलाव जैसी आपदाओं की बेहतर भविष्यवाणी के लिए कर सकेंगे।

BHEL की असाधारण तकनीकी भूमिका

BHEL ने इस मिशन के लिए अपने बेंगलुरु प्लांट में अत्याधुनिक 3 स्पेस-ग्रेड सोलर पैनल (प्रत्येक लगभग 4 वर्ग मीटर) एवं 1,100 वॉट क्षमता की बैटरियों का निर्माण किया। इन पैनलों से पूरा सैटेलाइट सिस्टम ऊर्जा लेगा, जिससे इसके सभी यंत्रपुर्जे और सेंसर सुचारु रूप से कार्यरत रहेंगे।

  • BHEL के 11 KWh की लिथियम आयन बैटरियाँ सैटेलाइट में लगाई गई हैं, जिससे यह 747 किमी ऊंची सूर्य-सिंकृतिक कक्षा (sun-synchronous orbit) में लंबे समय तक सक्रिय रह सके।

  • इसके अलावा, GSLV-F16 लॉन्च व्हीकल में भी 112 BHEL द्वारा उत्पादित लिथियम आयन सेल्स का उपयोग हुआ है, जिनकी विश्वसनीयता अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी उतरी है।

  • चंद्रयान-3, मार्स मिशन और SPADEX सहित अतीत के कई ISRO अभियानों में भी BHEL के उत्पादों का प्रयोग किया जा चुका है।

ऐतिहासिक मिशन की लॉन्चिंग

30 जुलाई 2025 को श्रीहरिकोटा से भारी-भरकम GSLV-F16 रॉकेट लॉन्च किया गया, जिसमें दोनों देशों के मूर्धन्य वैज्ञानिक मौजूद थे। NISAR के सफल प्रक्षेपण ने न केवल भारत की तकनीकी क्षमताओं को दुनिया के सामने रखा, बल्कि अमेरिका जैसे विज्ञान अग्रणी देश के साथ भारत की बराबरी और उसका विश्वास भी दर्शाया।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग और तकनीकी आत्मनिर्भरता

इस मिशन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि सैटेलाइट में शामिल अनेक यंत्र, नियंत्रण प्रणाली और ऊर्जा समाधानों में भारत का योगदान रहा। NASA ने ADK, सेंसर, नियंत्रण और विज्ञान उपकरण विकसित किए, जबकि ISRO व BHEL ने सैटेलाइट का बस, पराबैंगनी सौर पैनल्स और उच्च गुणवत्ता वाली बैटरियाँ स्वदेश में ही तैयार कीं। यह भारत की अंतरिक्ष इंजीनियरिंग के वैश्विक पहचान का एक सशक्त प्रतीक है।

सामाजिक, वैज्ञानिक और आर्थिक असर

  • NISAR मिशन का डेटा भूकंपीय गतिविधियों, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन की निगरानी में पुलिस, प्रशासन, वैज्ञानिक तथा किसान समुदाय सभी के लिए उपयोगी रहेगा।

  • उच्च गुणवत्ता वाले मैप हर 12 दिन में पूरे ग्रह के सतह का सर्वेक्षण देंगे, जिससे सटीक और समय पर निर्णय संभव होंगे।

  • भारतीय कंपनियों के द्वारा तैयार स्पेस हार्डवेयर की वृद्धि देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देगी और “मेक इन इंडिया” जैसे अभियानों को बल मिलेगा।

निष्कर्ष

BHEL के तकनीकी योगदान ने भारत की स्पेस इंजीनियरिंग को अंतरराष्ट्रीय पटल पर मिसाल बना दिया है। ISRO- NASA का NISAR मिशन केवल वैज्ञानिक उपलब्धि ही नहीं, बल्कि भारत की औद्योगिक आत्मनिर्भरता, तकनीकी उत्कृष्टता और वैश्विक सहयोग का जीवंत उदाहरण है। ऐसे मिशनों से भारत का भविष्य उज्ज्वल दिखता है और विज्ञान में आत्मनिर्भरता का कारवां निरंतर आगे बढ़ रहा है।

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