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चंदा कोचर दोषी: ICICI Bank-Videocon घूसखोरी मामले में बड़ा न्यायिक फैसला

मुख्य अपडेट: SAFEMA न्यायाधिकरण ने 3 जुलाई 2025 के अपने ऐतिहासिक फैसले में पूर्व ICICI Bank CEO चंदा कोचर को Videocon Group को ₹300 करोड़ ऋण मंजूर करने के बदले ₹64 करोड़ घूस स्वीकार करने का दोषी पाया है। यह निर्णय भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कॉर्पोरेट गवर्नेंस और नैतिक व्यवहार के लिए मिसाल बनेगा।

न्यायाधिकरण का निर्णायक फैसला

Smugglers and Foreign Exchange Manipulators Act (SAFEMA) के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण ने एक व्यापक जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि 2009 में ICICI Bank द्वारा Videocon International Electronics Limited को दिया गया ₹300 करोड़ का ऋण एक स्पष्ट “quid pro quo” व्यवस्था थी।न्यायाधिकरण के अनुसार, ऋण वितरण के मात्र एक दिन बाद ₹64 करोड़ Supreme Energy Private Limited से NuPower Renewables Private Limited में स्थानांतरित किया गया, जो चंदा कोचर के पति दीपक कोचर के नियंत्रण में था।67

न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा, “Prevention of Money Laundering Act की धारा 50 के तहत दर्ज बयान स्वीकार्य हैं और इन पर भरोसा किया जा सकता है। कागजों पर NRPL का स्वामित्व वी.एन. धूत के नाम दिखाया गया था, लेकिन उनके अनुसार भी कंपनी का पूरा नियंत्रण दीपक कोचर का था।”

जटिल वित्तीय जाल का खुलासा

मामले की जांच से एक जटिल वित्तीय संरचना का पता चला है जिसमें कई कंपनियों के माध्यम से धन का प्रवाह किया गया था। वैसे तो NuPower Renewables को 2008 में दीपक कोचर और Videocon के वेणुगोपाल धूत के बीच 50:50 संयुक्त उद्यम के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन धूत ने केवल 22 दिन बाद ही कंपनी से अपना नाम वापस ले लिया था। इसके बावजूद, Videocon की सहायक कंपनी Supreme Energy ने NuPower में ₹64 करोड़ का निवेश किया, जो बाद में Pinnacle Energy Trust के माध्यम से दीपक कोचर के पूर्ण नियंत्रण में आ गया।

पूर्व फैसले को पलटना

न्यायाधिकरण ने नवंबर 2020 में PMLA न्यायाधिकारी प्राधिकरण द्वारा दिए गए फैसले को पलट दिया, जिसमें कोचर दंपत्ति की ₹78 करोड़ मूल्य की संपत्तियों की रिहाई का आदेश दिया गया था।न्यायाधिकरण ने कहा कि पूर्व प्राधिकरण ने “महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की थी और अप्रासंगिक बातों पर ध्यान दिया था।”

बैंकिंग नीतियों का उल्लंघन

न्यायाधिकरण ने पाया कि चंदा कोचर ने ICICI Bank की आंतरिक नीतियों का स्पष्ट उल्लंघन किया था।बैंक की नीति के अनुसार, उन्हें उस ऋण समिति की बैठक में भाग नहीं लेना चाहिए था जहां Videocon के ऋण पर निर्णय लिया जा रहा था, क्योंकि उनके पति की कंपनी का इससे प्रत्यक्ष वित्तीय हित जुड़ा था। लेकिन न केवल उन्होंने बैठक में भाग लिया बल्कि ऋण को “तत्काल श्रेणी” में मंजूर भी कराया।

CBI की जांच और गिरफ्तारी

Central Bureau of Investigation (CBI) ने जनवरी 2019 में इस मामले में FIR दर्ज की थी, जिसमें चंदा कोचर, दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत को आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और आधिकारिक दायित्व के दुरुपयोग के अंतर्गत नामजद किया गया था।23 दिसंबर 2022 में तीनों को गिरफ्तार किया गया था, हालांकि बाद में बंबई उच्च न्यायालय ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी।

ICICI Bank का रुख

दिलचस्प बात यह है कि ICICI Bank के बोर्ड ने अप्रैल 2023 में CBI को चंदा कोचर के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी, हालांकि बैंक ने यह स्पष्ट किया कि “बैंक को कोई गलत नुकसान नहीं हुआ है।”बैंक का कहना था कि quid pro quo की स्थिति में भी ऋण समुचित प्रक्रिया का पालन करके दिया गया था।

बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव

यह मामला भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की कमियों को उजागर करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के भ्रष्टाचार मामले निवेशकों का भरोसा कम करते हैं और बैंकों की विश्वसनीयता पर प्रभाव डालते हैं।फिच रेटिंग्स ने 2018 में ही ICICI Bank के कॉर्पोरेट गवर्नेंस की मजबूती पर सवाल उठाए थे।

सुधारात्मक उपाय

इस मामले के बाद RBI और सरकार ने बैंकिंग धोखाधड़ी को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं।इनमें Central Fraud Registry (CFR) की स्थापना, Fugitive Economic Offenders Act 2018 का अधिनियमन, और AI/ML आधारित निगरानी प्रणालियों का विकास शामिल है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में बैंक धोखाधड़ी के मामलों में 61% की कमी आई है।

भविष्य की राह

न्यायाधिकरण का यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मिसाल है, जो दिखाता है कि उच्च पदस्थ अधिकारियों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है। यह निर्णय बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने में सहायक होगा।

चंदा कोचर का मामला अभी भी न्यायाधीन है और सुप्रीम कोर्ट इसकी निगरानी कर रहा है। यह मामला भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस सुधार और वित्तीय संस्थानों में पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

 

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