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Introduction
भारत के सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक रतन टाटा अपनी सादगी और सरल जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। लेकिन उनके निजी सहायक शांतनु नायडू भी इसी सादगी की मिसाल बनकर उभरे हैं। शांतनु की वार्षिक आय भले ही 50 से 60 लाख रुपये के बीच हो, लेकिन वे आज भी अपनी पसंदीदा कार — टाटा नैनो चलाना पसंद करते हैं।
कौन हैं शांतनु नायडू?
शांतनु नायडू टाटा ग्रुप में रतन टाटा के ओफिशियल असिस्टेंट हैं। उनका संबंध ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से है और वे पुणे के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं। शांतनु की पहचान सिर्फ एक सहायक के रूप में नहीं है, बल्कि वे एक सोशल एंटरप्रेन्योर और लेखक भी हैं। उन्होंने “I Came Upon a Lighthouse” नाम से एक किताब भी लिखी है, जो रतन टाटा के साथ उनके रिश्ते पर आधारित है।
50-60 लाख सालाना कमाई, लेकिन दिल है टाटा नैनो का
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शांतनु की सालाना सैलरी करीब 50 से 60 लाख रुपये है। इसके बावजूद उन्होंने महंगी लग्जरी कारों की जगह टाटा नैनो को अपनी प्राथमिकता दी है। शांतनु मानते हैं कि टाटा नैनो सिर्फ एक कार नहीं, बल्कि एक विज़न है — रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट जिसे उन्होंने भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए लॉन्च किया था।
रतन टाटा की नजर में शांतनु क्यों खास हैं?
रतन टाटा और शांतनु की मुलाकात एक खास वजह से हुई थी। जब शांतनु कॉलेज में थे, तब उन्होंने सड़कों पर आवारा कुत्तों की सुरक्षा के लिए “Glow in the Dark” डॉग कॉलर प्रोजेक्ट शुरू किया था। रतन टाटा इस प्रोजेक्ट से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शांतनु को अपना सहायक बना लिया।
रतन टाटा ने एक इंटरव्यू में कहा था, “शांतनु में वो जुनून और संवेदनशीलता है जो आज के युवा उद्यमियों में कम देखने को मिलती है।” यही कारण है कि शांतनु न केवल उनके सहायक बने बल्कि उनके विश्वासपात्र और करीबी सहयोगी भी।
टाटा नैनो: एक सपना जो आज भी ज़िंदा है
टाटा नैनो को जब 2008 में लॉन्च किया गया था, तो इसे “भारत की सबसे सस्ती कार” कहा गया। रतन टाटा का सपना था कि एक आम भारतीय परिवार भी कार का सपना साकार कर सके। हालांकि बाद में उत्पादन बंद हो गया, लेकिन शांतनु जैसे लोग आज भी इस कार को चलाकर उस सपने को जिंदा रखे हुए हैं।
एक प्रेरणा हर युवा के लिए
शांतनु नायडू की कहानी सिर्फ एक सैलरी या कार तक सीमित नहीं है। यह कहानी है सादगी, कर्तव्यनिष्ठा और मूल्यों की। ऐसे समय में जब लोग ब्रांडेड गाड़ियों और दिखावे की दौड़ में लगे हैं, शांतनु अपने काम और सोच से यह दिखा रहे हैं कि असली स्टेटस आपकी सोच और कर्म में होता है, न कि आपकी कार में।
उनका यह जीवनशैली का चयन न केवल रतन टाटा की सोच को प्रतिबिंबित करता है, बल्कि आज की युवा पीढ़ी के लिए भी एक गहरी प्रेरणा है।
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